।। ॐ श्री विष्णुरूपाय महर्षि भृगवे नमो नमः ।।

भृगु संहिता संस्थान के संस्थापक एवं संचालक

भृगु संहिता की प्रथा हमारे परिवार में पीढ़ियों से चली आ रही है। हमारा पैतृक कार्यस्थल ग्राम ब्रह्मपुर (खजुरनी), पोस्ट रामपुर गौरी, जनपद प्रतापगढ़ (उ.प्र.) में है। वर्तमान में हमारा कार्यालय दो जनपद में संचालित है। प्रथम स्थान कटरा रोड, सिविल लाइंस, प्रतापगढ़ (उ.प्र.) में स्थित है और दूसरा स्थान प्रयागराज जनपद में शान्तीपुरम् में स्थित है। इन दोनों स्थलों पर भृगु संहिता से जन्म कुण्डली का निर्माण एवं फलादेश सुनाया जाता है।

 

पं. श्री हरिनारायण द्विवेदी जी ने भृगु संहिता को देश-देशांतर में जनमानस तक प्रसिद्धी दिलाने में में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उन्होंने भृगु संहिता संस्थान की स्थापना प्रतापगढ़ जनपद में की। वर्तमान में पं. ब्रह्मदत्त द्विवेदी जी भृगु संहिता संस्थान के अध्यक्ष हैं और भृगु संहिता से सम्बन्धित समस्त कार्य को पूर्ण निष्ठा के साथ कर रहे हैं।

भृगु संहिता में लग्न संशोधन की जटिल प्रक्रिया एवं फलादेश की विधि

भृगु संहिता शब्द दो शब्दों ‘भृगु‘ और ‘संहिता‘ से मिलकर बना है। ‘संहिता‘ संग्रह की धारणा को व्यक्त करता है, जो महर्षि भृगु द्वारा एकत्रित अंतर्दृष्टि के एकत्रीकरण का प्रतिनिधित्व करता है। उनकी अंतर्दृष्टि की परिणति भृगु संहिता के चार अध्यायों में सन्निहित है। ये अध्याय भृगु संहिता के प्रमुख घटकों के रूप में कार्य करते हैं, जो भविष्य के बारे में गहन अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। भृगु संहिता में लग्न और इष्टकाल के आधार पर अलग-अलग कुंडली हैं। उन्हीं कुंडलियों में संस्कृत भाषा में श्लोकों के माध्यम से विस्तृत भविष्यवाणी की गई है। भृगु संहिता बताती है कि व्यक्ति का भाग्योदय कब होगा। भृगु संहिता कई जन्मों के रहस्यों को उजागर करती है। यदि आप अपने पिछले जन्म के बारे में जानना चाहते हैं, तो पांच हजार साल पुरानी भृगु संहिता से जन्म तिथि और जन्म समय के माध्यम से यह सम्भव है परन्तु इसके लिए सही जन्म तिथि एवं सटीक जन्म समय का होना अत्यन्त आवश्यक है।

जन्म समय की अस्थिरता में सटीक लग्न प्राप्त करने हेतु प्रक्रिया

भृगु संहिता की भविष्यवाणियों में जन्म समय का बहुत महत्व है। जन्म समय को सही करके ही सही लग्न का निर्णय किया जा सकता है। यदि जन्म समय की सत्यता में कोई अनिश्चितता हो या जन्म समय का ज्ञान न हो तो ऐसी स्थिति में जातक के पूर्व समय की घटनाओं के आधार पर तथा पारिवारिक विवरण के आधार पर जन्म समय और लग्न को सही किया जाता है, तत्पश्चात सही भृगु संहिता पत्रांक खोजा जाता है और भविष्यकथन किया जाता है।

भृगु संहिता शास्त्र के प्रमुख खण्ड एवं अध्याय

भृगु संहिता दुर्लभ पांडुलिपियों का संग्रह है। भृगु संहिता जन कल्याण के लिए रची गई है और इसका श्रेय वैदिक काल के सात ऋषियों में से एक भृगु जी को जाता है। भृगु संहिता शास्त्र की संपूर्ण भविष्यवाणी चार अध्यायों में समाहित है। ये अध्याय भृगु संहिता के प्रमुख घटक के रूप में कार्य करते हैं, जो भविष्य के बारे में गहन जानकारी प्रदान करते हैं।

1. फलित खंड: भृगु संहिता के इस खंड में जातक के संपूर्ण जीवन की शुभ-अशुभ भविष्यवाणियों का वर्णन किया गया है। यह खंड बहुत विस्तृत है, इसमें पिछले जन्म का भी वर्णन है, इसलिए इसे लग्न के आधार पर 12 भागों में विभाजित किया गया है, जिससे सटीक पत्रांक खोजना आसान हो जाता है।

2. मंत्राध्याय खंड: भृगु संहिता के इस खंड में भृगुसंहितोक्त प्रभावशाली मंत्रों का वर्णन है, इसके साथ ही प्रायश्चित की विधि भी बताई गई है। इस खंड में ग्रहों की अनुकूलता के लिए मंत्र, रत्न और यंत्रों का भी प्रावधान है।

3. संतानोपाय खंड: भृगु संहिता के इस खंड में संतान प्राप्ति के लिए अनेक मंत्र और उपाय बताए गए हैं। यदि जातक को कोई संतान न हो और उसका जन्म विवरण भी ज्ञात न हो तो इस खंड में वर्णित उपाय से संतान सुख की प्राप्ति संभव है। इस खंड में मंत्रों के साथ-साथ औषधियों का भी वर्णन किया गया है।

4. प्रश्न खंड: भृगु संहिता के इस खंड में प्रश्नों के माध्यम से भविष्यकथन का उल्लेख किया गया है। यदि किसी व्यक्ति को अपना जन्म विवरण ज्ञात न हो तो भी प्रश्न कुंडली के माध्यम से उसका भविष्य जाना जा सकता है और प्रश्न खंड से कुंडली भी बनाई जा सकती है। तात्कालिक घटनाओं का विश्लेषण भी इसी खंड से किया जाता है।

भृगु संहिता शास्त्र का परिचय

भृगु संहिता वैदिक काल (त्रेता युग) के दौरान महर्षि भृगु जी के द्वारा रचित और ज्योतिषीय भविष्यवाणियों का संग्रह है। कहा जाता है कि भृगु संहिता को शुक्राचार्य ने ऋषि भृगु के निर्देश पर लिखा था, जिन्होंने ‘ब्रह्म विद्या’ में महारत हासिल की थी। जैसा कि किंवदंती है, भृगु जी अग्नि से पैदा हुए थे। उनका शरीर जला हुआ था, फिर भी ज्ञान की रोशनी ने उन्हें अग्नि की तरह चमकाया। श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान कृष्ण ने खुद कहा है “ऋषियों में मैं महर्षि भृगु हूँ। भृगु संहिता मूल रूप से इस ग्रह पृथ्वी पर रहने वाले लाखों और खरबों मनुष्यों की जन्म कुंडली पर एक विशाल डेटा है। यह उनके जीवन काल, प्रमुख उपलब्धियों के साथ-साथ जीवन में घटित होने वाले नकारात्मक काल से संबंधित है। यह एक व्यक्ति के पिछले जन्मों और होने वाले जन्मों का भी वर्णन करता है। भृगु संहिता मूल रूप से संस्कृत भाषा में लिखी गई थी और यह श्लोकवद्ध है इसमें बहुत कूट शब्दावलियों का प्रयोग है जिसे शायद बाद में प्राकृत और फिर अन्य भाषाओं में अनुवादित किया गया था।

 

प्राचीन भारत में महर्षि भृगु जी ने मानव जाति की भावी पीढ़ियों को धार्मिकता (धर्म) और आनंद (मोक्ष) के मार्ग पर मार्गदर्शन करने के लिए मानवीय मामलों पर चिंतन किया। महर्षि भृगु जो भगवान ब्रह्मा के सबसे बड़े मानस पुत्र थे, उन्हें दैवीय शक्तियों (ब्रह्म विद्या) की मदद से हमारे सामूहिक और व्यक्तिगत अस्तित्व के भूत, वर्तमान और भविष्य के बारे में गहरी अंतर्दृष्टि थी। महर्षि भृगु जी ने एक ऐसे ग्रंथ की रचना करने का निर्णय लिया, जिसका पालन करने से मनुष्य को अपना भूत, वर्तमान और भविष्य जानने में मदद मिलेगी और एक जन्म से दूसरे जन्म तक विशेष आत्मा की यात्रा के बारे में पता चलेगा। भृगु संहिता में आत्मा द्वारा किए जाने वाले विभिन्न कर्म और उनके परिणाम और तद्नुसार जीवन में उत्थान-पतन, शुभ-अशुभ घटनाओं को निष्क्रिय करने के लिए किए जाने वाले उपाय (प्रायश्चित) का वर्णन है।

 

भृगु संहिता को मूल रूप से भोज पत्र (पेड़ों की छाल) पर लिखा गया था। बाद में विभिन्न संस्कृत विद्वानों की मदद से उन्हें कागजों में कॉपी किया गया, उन्हीं संस्कृत विद्वानों के अथक परिश्रम का परिणाम है, जिसका लाभ हम आज उठा सकते हैं। हालाँकि कागजों की सामग्री बहुत नाजुक है और स्याही फीकी है, फिर भी कुछ कुण्डली अभी भी पेड़ की छाल पर लिखी गई हैं, जो कुल मिलाकर नाजुक और संभालना मुश्किल है। ग्रंथ का संरक्षण सबसे कठिन कार्य है। हर किसी के लिए अपनी कुण्डली का पत्रांक में खोजना संभव नहीं है क्योंकि पूरा पत्रांक कई लाखों की संख्या मात्रा में है। इसे मिलान करने और बाद में सम्बन्धित व्यक्ति को पढ़कर भविष्यवाणी करने में कुछ समय लगता है।

भृगु संहिता शास्त्र का इतिहास और उपलब्धियां

भृगु संहिता कर्म के सिद्धांत पर आधारित है। एक जन्म से दूसरे जन्म तक की यात्रा और वर्तमान जीवन में उस आत्मा द्वारा किए गए और किए जाने वाले कर्म। यह उनके जीवनकाल, प्रमुख उपलब्धियों और नुकसानों, उनके परिणामों और उतार-चढ़ाव को बेअसर करने के लिए किए जाने वाले उपायों से सम्बन्धित है। भृगु संहिता पत्रांक में तारीख, महीना और यहां तक ​​कि वह समय भी दर्ज है जब विशेष फलादेश पढ़ा जाएगा।  इस प्रकार की सटीकता के साथ, कई बार लोगों को ऐसा महसूस होता है कि यदि हम भृगु जी द्वारा रचित भृगु संहिता के माध्यम से अपने जीवन का फलादेश पहले ही सुन लिए होते, तो हमारा बहुत सारा समय, ऊर्जा और व्यय बच जाता जो हम केवल अपनी भौतिक इच्छाओं की संतुष्टि में लिप्त भ्रामक तत्वों के बहकावे में आकर यहां-वहां भटकने में नष्ट कर रहे हैं।

आधुनिक जीवन का एक अभिशाप है किसी भी चीज और हर चीज पर संदेह करना जिसे विज्ञान समझाने में असमर्थ है, लेकिन जिन लोगों को भृगु संहिता से उनका फलादेश सुनने का अवसर मिला, उन्हें यह बहुत आश्चर्यजनक लगा, विशेष रूप से प्रत्येक व्यक्ति के लिए उल्लिखित समय जब व्यक्ति अपने कर्मों की कुण्डली सुनने के लिए आता था। लाखों कुंडलियों को नदियों के किनारों के नामों से भौगोलिक रूप से अनुक्रमित किया गया है। भौगोलिक क्षेत्र आधुनिक राष्ट्रीय सीमाओं को पार करते हैं। ‘मनु देश’ वर्तमान यूरोप के लिए है, पाताल देश संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए है, ‘यवन प्रांत’ मध्य पूर्व आदि। दूर-दूर से, अमीर और गरीब सभी क्षेत्रों के लोगों ने इस ग्रंथ से भविष्य फल का लाभ उठाया है। दिलचस्प बात यह है कि विदेशियों की कुण्डली में यह उल्लेख नहीं होता कि व्यक्ति किस जाति में जन्मा है।

भृगु संहिता शास्त्र के रचयिता महर्षि भृगु जी का परिचय

महर्षि भृगु आदि ऋषि परंपरा के एक ऋषि हैं। वह सात महान ऋषियों, सप्तर्षियों में से एक हैं, और ब्रह्मा द्वारा बनाए गए कई प्रजापतियों (सृष्टि के सूत्रधार) में से एक हैं । वे भविष्य ज्योतिष के पहले संकलनकर्ता थे और भृगु संहिता  के लेखक भी थे, जो ज्योतिष शास्त्र का अलौकिक प्रभावशाली ग्रन्थ है। भृगु को ब्रह्मा का मानस पुत्र (मन से पैदा हुआ पुत्र) माना जाता है। नाम का विशेषण रूप, भार्गव, भृगु के वंशजों को संदर्भित करने के लिए प्रयोग किया जाता है। मनुस्मृति के अनुसार, भृगु मानवता के पूर्वज, स्वायंभुव मनु के समानांतर थे। मनु के साथ, भृगु ने मनुस्मृति में महत्वपूर्ण योगदान दिया। स्कन्द पुराण के अनुसार, भृगु अपने पुत्र च्यवन को धोसी हिल पर छोड़कर, नर्मदा नदी के तट पर भृगुकच्छ क्षेत्र में चले गए।

 

भागवत पुराण के अनुसार उनका विवाह प्रजापति कर्दम की नौ पुत्रियों में से एक ख्याति से हुआ था। वह भार्गवी के रूप में लक्ष्मी की माँ थीं । उनके धाता और विधाता नाम के दो बेटे भी थे। काव्यमाता से उनका एक और बेटा था, जो स्वयं भृगु से भी अधिक प्रतिभाशाली जाना जाता है उन्हें शुक्र, विद्वान ऋषि और असुरों के गुरु के नाम से संबोधित किया जाता है। ऋषि च्यवन को भी पुलोमा के साथ उनका पुत्र कहा जाता है। उनके वंशजों में से एक ऋषि जमदग्नि थे, जो ऋषि परशुराम के पिता थे, जिन्हें विष्णु का अवतार माना जाता है।

 

महर्षि भृगु मानस पुत्र (इच्छा से पैदा हुए) थे। ऐसा हुआ कि जब भगवान ब्रह्मा इस ब्रह्मांड को बनाने के बारे में सोच रहे थे, तो उन्हें कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ा, जिसके लिए उन्होंने महर्षि भृगु जी से मदद करने का अनुरोध किया। महर्षि भृगु को ‘प्रजापति’ (निर्माता) भी कहा जाता है क्योंकि उन्हें भगवान ब्रह्मा ने ब्रह्मांड की रचना की प्रक्रिया में उनकी मदद करने के लिए उत्पन्न किया था।

महर्षि भृगु जी द्वारा त्रिदेव (ब्रह्मा-विष्णु-शिव) की परिक्षा और लक्ष्मी जी का श्राप

यह सर्वविदित है कि हमारा भाग्य उल्लेखनीय चीजों के निर्माण या जन्म में भूमिका निभाता है। जब हजारों वर्ष पूर्व इस सृष्टि का निर्माण हुआ तो चार वर्ष पश्चात सभी महाशक्तियों ने देखा कि मानव जाति घोर पीड़ा और समस्याओं में है तो उन्होंने मानवता के कल्याण के लिए एक यज्ञ करने का निर्णय लिया। तभी नारद जी ने प्रश्न किया कि इस यज्ञ का नेतृत्व कौन करेगा। नारद जी के प्रश्न पर सभी ऋषि मुनि आश्चर्यचकित हो गए और उन्होंने सोचा कि यह बहुत ही उचित प्रश्न है। महर्षि भृगु जी ने उनसे कहा कि इस सृष्टि के रचयिता ही हमारा मार्गदर्शन कर सकते हैं लेकिन फिर नारद जी ने उत्तर दिया कि तीनों में से केवल ब्रह्मा, विष्णु और शिव ही हमारा मार्गदर्शन कर सकते हैं, अतः इन त्रिदेवों में सर्वश्रेष्ठ कौन है और किसमें नेतृत्व की क्षमता सबसे अधिक है इसका पता लगाने के लिए बहुत ही चतुराई से महर्षि भृगु जी को यह कार्य सौंप दिया गया कि वे स्वयं इसका पता लगाएं। महर्षि भृगु जी ने यह कार्य स्वीकार भी कर लिया और मुनियों से इस मामले को सुलझाने के लिए समय मांगा। 

 

महर्षि भृगु जी सबसे पहले ब्राह्मण का वेश धारण करके भगवान ब्रह्मा के पास गए। वहां पहुंचकर उन्होंने ब्रह्मा जी को वेद लिखने में व्यस्त देखा और भगवान ब्रह्मा ने भृगु जी की ओर कोई ध्यान ही नहीं दिया जिससे उन्होंने अपमानित महसूस किया और अपनी कटु प्रवृत्ति से भगवान ब्रह्मा को श्राप दे दिया कि आज से इस संसार में उनकी पूजा नहीं होगी क्योंकि जब वे अपने दरवाजे पर खड़े व्यक्ति को नहीं देख सकते तो वे मानव जाति की समस्याओं को कैसे देखेंगे और उनका समाधान कैसे करेंगे। उन्होंने ब्रह्मा जी से यह भी कहा कि वे संसार के रचयिता का हिस्सा बनकर अच्छे नहीं हैं। इस पर ब्रह्मा जी को एहसास हुआ कि उन्होंने कितनी बड़ी भूल की है और महर्षि भृगु जी से अपनी अज्ञानता के लिए उन्हें क्षमा करने और श्राप से मुक्त करने के लिए कहा क्योंकि वे संसार के रचयिताओं में से एक हैं और उनके बिना यह संसार शून्य हो जाएगा। इस पर महर्षि भृगु जी को लगा कि उन्होंने ब्रह्मा जी के साथ थोड़ा कठोर व्यवहार किया था लेकिन श्राप वापस नहीं लिया जा सकता था इसलिए उन्होंने उन्हें यह कहकर छूट दे दी कि इस संसार में केवल एक स्थान पर आपकी पूजा होगी और वह स्थान पुष्कर क्षेत्र होगा। 

 

इसके बाद महर्षि भृगु जी भगवान शिव जी के धाम की ओर चल पड़े। भगवान शिव के धाम पर पहुंच कर महर्षि भृगु जी ने उनके गणों से अनुरोध किया कि वे भगवान शिव के दर्शन करना चाहते हैं, क्योंकि उन्हें कुछ जरूरी काम है, लेकिन शिवगणों ने साफ मना कर दिया, जिस पर महर्षि भृगु जी ने अपमानित महसूस किया, लेकिन उन्होंने उनसे फिर से अनुरोध किया कि वे कम से कम उन्हें संदेश तो दें, जिस पर शिवगण क्रोधित हो गए और महर्षि भृगु जी पर हमला करने के लिए अपने हथियार निकाल लिए। इस पर महर्षि भृगु जी नाराज हो गए और उन्होंने शिव जी को श्राप दे दिया कि कलयुग में इस संसार में कभी भी कोई आपकी पूजा नहीं करेगा। यह जानकारी जब भगवान शिव को हुई तो उन्होंने महर्षि भृगु जी के सामने प्रकट होकर अपने गणों के द्वारा किए गए कृत्य पर खेद व्यक्त करते हुए विनम्रता से कहा कि आपने जो श्राप दिया है उसमें बदलाव करिए। तब महर्षि भृगु जी ने उन्हें बताया कि श्राप वापस नहीं लिया जा सकता है और उन्हें बताया कि कलयुग में उनकी पूजा केवल लिंग के रूप में की जाएगी। यही कारण है कि हम सभी मंदिर में शिवलिंग की पूजा करते हैं, कहीं भी भगवान शिव जी के मूर्ति की पूजा नहीं होती है।

 

तत्पश्चात महर्षि भृगु जी भगवान विष्णु के धाम पहुंचे। उस समय भगवान श्री विष्णु शयन कर रहे थे और माता लक्ष्मी उनका पैर दबा रही थी। महर्षि भृगु जी ने यह देखा तो क्रोधित हो गए क्योंकि उन्होंने सोचा कि भगवान विष्णु वास्तव में सो नहीं रहे हैं बल्कि उनका अपमान करने के लिए सोने का नाटक कर रहे हैं। यह वह समय था, जब महर्षि भृगु जी ने अपने दाहिने पैर से भगवान श्री विष्णु की छाती पर लात मारी। जब उन्हें लात लगी तो भगवान विष्णु ने अपनी आंखें खोलीं और खड़े हो गए। महर्षि भृगु जी को वहां खड़े देखकर भगवान विष्णु आश्चर्यचकित हो गए। इसलिए उन्होंने अपना सिर नीचे झुका लिया और दोनों हाथ जोड़ लिए, और महर्षि भृगु जी से कहा, “हे महर्षि, मेरी छाती वज्र के समान कठोर है, लेकिन आपके पैर बहुत कोमल हैं। हो सकता है कि मुझे लात मारते समय आपको चोट लग गई हो। इसलिए कृपया मुझे इसके लिए क्षमा करें।” मैं आपके चरणों की धूलि सदैव अपने वक्षस्थल पर धारण करूंगा। भगवान विष्णु के विनम्र पूर्वक वचनों को सुनते हुए और सहनशीलता को देखते हुए महर्षि भृगु जी ने उन्हें सबसे महान घोषित किया। लेकिन भगवान विष्णु की पत्नी देवी लक्ष्मी ने इसे अपने पति का अपमान माना।  उन्होंने महर्षि भृगु जी को श्राप दिया कि वे और उनका समुदाय (ब्राह्मण) जिसके वे प्रतिनिधि हैं, धन-संपत्ति से वंचित हो जाएंगे।

महर्षि भृगु जी के द्वारा भृगु संहिता के निर्माण का उद्देश्य

अपने पति भगवान विष्णु के अपमान के फलस्वरूप जब लक्ष्मी जी ने श्राप दे दिया तो महर्षि भृगु और भगवान विष्णु दोनों चिन्तित हुए। लक्ष्मी जी के श्राप के प्रभाव से जनमानस में धन, वैभव, सम्पदा एवं भौतिक सुखों के हेतु अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न हो गई और ब्राह्मण वर्ग धन सम्पत्ति से वंचित हो गए इसके बाद महर्षि भृगु देवी लक्ष्मी जी से क्षमा मांगते हुए कहा कि उनका उद्देश्य भगवान विष्णु का अपमान करना नहीं था अपितु यह कार्य त्रिदेव (ब्रह्मा-विष्णु-शिव) के धैर्य और सहनशीलता के परीक्षण हेतु था। इस रहस्य को जानकर लक्ष्मी जी का क्रोध शान्त हुआ लेकिन श्राप का प्रभाव नष्ट होना असम्भव था अतः लक्ष्मी जी के द्वारा दिए गए श्राप की निवृत्ति के लिए भगवान विष्णु ने महर्षि भृगु जी को प्रेरणा दी और उन्हें भृगु संहिता लिखने का सुझाव दिया, जिसमें लोगों के भूत, वर्तमान और भविष्य की भविष्यवाणियां हों, इस ग्रंथ को पढ़कर ब्राह्मण अपनी आजीविका चला सकेंगे और लक्ष्मी जी की कृपा सदैव ब्राह्मणों पर बनी रहेगी। इसके पश्चात महर्षि भृगु जी ने जनमानस एवं ब्राह्मणों के कल्याणार्थ एक अलौकिक ग्रन्थ की रचना की जो कालान्तर में भृगु संहिता के नाम से देश-देशांतर में प्रसिद्ध हुई। किंवदंती के अनुसार बाद में क्रोधित लक्ष्मी पृथ्वी पर पद्मावती के रूप में जन्म लेती हैं और भगवान विष्णु श्रीनिवास और वेंकटेश्वर का रूप धारण करते हैं।

भृगु संहिता संस्थान से सम्पर्क करें

भृगु संहिता संस्थान का पता : कटरा रोड, सिविल लाइंस, प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश) 230001 भारत

ईमेल : bhrigujiastro@gmail.com 

ह्वाट्सएप एवं मोबाइल नंबर : +91-8887372924